“पंद्रह साल की उम्र वह उम्र होती है जिसमें कोई लड़का कभी किसी हसीन दोशीजा की जुस्तजू में समर्पण कर देना चाहता है और कभी किसी इंकलाब की आरज़ू में बगावत का परचम उठा लेना चाहता है। मगर इन दोनों चाहों के मूल में एक ही चाह होती है, ख़ूबसूरती की चाह। कभी आइने में झलकते अपने ही अक्स से मुहब्बत हो जाना तो कभी अपनी कमियों और सीमाओं से विद्रोह पर उतर आना, सब कुछ अनंत के सौन्दर्य को ख़ुद से लपेट लेने और ख़ुद में समेट लेने की क़वायद सा होता है।”
− Sandeep Nayyar −
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